Friday, 16 October 2020

हिन्दू समाज की वे परम्पराए जिन्हें सहेजना जरूरी

हिन्दू समाज की वे परम्पराए जिन्हें सहेजना जरूरी 


एक गोत्र में शादी क्यूँ नहीं..


 वैज्ञानिक कारण..!
     
एक दिन डिस्कवरी पर
  जेनेटिक बीमारियों से
     सम्बन्धित एक ज्ञानवर्धक कार्यक्रम था।

         उस प्रोग्राम में
एक अमेरिकी वैज्ञानिक ने कहा कि
  जेनेटिक बीमारी न हो
  इसका एक ही इलाज है।
  
और वो है
          *"सेपरेशन ऑफ़ जींस"*
          
मतलब अपने नज़दीकी रिश्तेदारों में
  विवाह नहीं करना चाहिए
क्योंकि 
नज़दीकी रिश्तेदारों में
Genes separation (विभाजन) नहीं हो पाता
 और
Genes linked बीमारियाँ जैसे
हिमोफ़ीलिया, कलर ब्लाईंडनेस, और
एल्बोनिज्म होने का
100% चांस होता है ..

फिर बहुत ख़ुशी हुई
जब उसी कार्यक्रम में
ये दिखाया गया कि 
आखिर
   *"हिन्दू धर्म"* में
     हज़ारों-हज़ार साल पहले
    
       जींस और डीएनए के बारे में
       
       कैसे लिखा गया है ?
       
    हिंदुत्व में गोत्र होते हैं
      
और
         एक गोत्र के लोग
आपस में शादी नहीं कर सकते
ताकि जींस सेपरेट (विभाजित) रहे.. 

    उस वैज्ञानिक ने कहा कि
    
आज पूरे विश्व को मानना पड़ेगा कि

            "हिन्दू धर्म ही"
विश्व का एकमात्र ऐसा धर्म है जो
    "विज्ञान पर आधारित" है !
    

*हिंदू परम्पराओं से जुड़े*


  *ये वैज्ञानिक तर्क:*
       
1-
*कान छिदवाने की परम्परा*

     भारत में लगभग सभी धर्मों में
        कान छिदवाने की
            परम्परा है।

*वैज्ञानिक तर्क-*

दर्शनशास्त्री मानते हैं कि
 इससे सोचने की शक्त‍ि बढ़ती है।
जबकि
डॉक्टरों का मानना है कि इससे बोली
अच्छी होती है और
कानों से होकर दिमाग तक जाने वाली नस का
रक्त संचार नियंत्रित रहता है।

2-

*माथे पर कुमकुम/तिलक*


   महिलाएँ एवं पुरुष माथे पर
      कुमकुम या तिलक लगाते हैं ।

*वैज्ञानिक तर्क-*

आँखों के बीच में
माथे तक एक नस जाती है।
कुमकुम या तिलक लगाने से
उस जगह की ऊर्जा बनी रहती है।
माथे पर तिलक लगाते वक्त जब अंगूठे या उँगली से प्रेशर पड़ता है,
तब चेहरे की त्वचा को रक्त सप्लाई करने वाली माँसपेशी सक्रिय हो जाती है।
इससे चेहरे की कोश‍िकाओं तक अच्छी तरह रक्त पहुंचता है।

3- 
*ज़मीन पर बैठकर भोजन करना*

   भारतीय संस्कृति के अनुसार
   ज़मीन पर बैठकर भोजन करना अच्छी बात होती है।

*वैज्ञानिक तर्क-*

पालथी मारकर बैठना
एक प्रकार का योगासन है।
इस पोज़िशन में बैठने से

मस्त‍िष्क शांत रहता है और
भोजन करते वक्त
अगर दिमाग शांत हो तो
 पाचन क्रिया अच्छी रहती है। इस पोज़िशन में बैठते ही
खुद-ब-खुद दिमाग से एक सिगनल
पेट तक जाता है, कि
वह भोजन के लिये तैयार हो जाये।

4-
*हाथ जोड़कर नमस्ते करना*

जब किसी से मिलते हैं तो
 हाथ जोड़कर नमस्ते अथवा नमस्कार करते हैं।

*वैज्ञानिक तर्क-*

जब सभी उँगलियों के शीर्ष
एक दूसरे के संपर्क में आते हैं
और उन पर दबाव पड़ता है।
एक्यूप्रेशर के कारण उसका
सीधा असर
हमारी आँखों, कानों और दिमाग पर होता है,
ताकि सामने वाले व्यक्त‍ि को हम लंबे समय तक याद रख सकें।
दूसरा तर्क यह कि हाथ मिलाने (पश्च‍िमी सभ्यता) के बजाय अगर आप नमस्ते करते हैं
तो सामने वाले के शरीर के कीटाणु आप तक नहीं पहुँच सकते।
अगर सामने वाले को स्वाइन फ्लू भी है तो भी वह वायरस आप तक नहीं पहुँचेगा।

5-
*भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से*

   जब भी कोई धार्मिक या
     पारिवारिक अनुष्ठान होता है तो
       भोजन की शुरुआत तीखे से और
          अंत मीठे से होता है।

*वैज्ञानिक तर्क-*

तीखा खाने से
हमारे पेट के अंदर
पाचन तत्व एवं अम्ल सक्रिय हो जाते हैं
इससे
पाचन तंत्र ठीक से संचालित होता है
अंत में
मीठा खाने से
अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है
इससे पेट में जलन नहीं होती है।

6-
*पीपल की पूजा*

तमाम लोग सोचते हैं कि
पीपल की पूजा करने से
भूत-प्रेत दूर भागते हैं। 

*वैज्ञानिक तर्क-*

इसकी पूजा इसलिये की जाती है,
ताकि
इस पेड़ के प्रति लोगों का सम्मान बढ़े
और
उसे काटें नहीं
पीपल एक मात्र ऐसा पेड़ है, जो
रात में भी ऑक्सीजन प्रवाहित करता है।

7-
*दक्ष‍िण की तरफ सिर करके सोना*

दक्ष‍िण की तरफ कोई पैर करके सोता है
तो लोग कहते हैं कि
बुरे सपने आयेंगे
भूत प्रेत का साया आयेगा, पूर्वजों का स्थान आदि
इसलिये
उत्तर की ओर पैर करके सोएँ। 
*वैज्ञानिक तर्क-*

जब हम
उत्तर की ओर सिर करके सोते हैं,
तब
हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों की सीध में आ जाता है।
शरीर में मौजूद आयरन यानी लोहा
दिमाग की ओर संचारित होने लगता है
इससे अलज़ाइमर,
पारकिंसन, या दिमाग संबंधी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है,
यही नहीं रक्तचाप भी बढ़ जाता है।

8-
*सूर्य नमस्कार*

हिंदुओं में
सुबह उठकर सूर्य को जल चढ़ाने,
नमस्कार करने की परम्परा है। 
*वैज्ञानिक तर्क-*

पानी के बीच से आने वाली
सूर्य की किरणें जब
आँखों में पहुँचती हैं तब 
हमारी आंखों की रौशनी अच्छी होती है।

9-
*सिर पर चोटी*

हिंदू धर्म में
ऋषि मुनि सिर पर चुटिया रखते थे,
आज भी लोग रखते हैं।
*वैज्ञानिक तर्क-*

जिस जगह पर चुटिया रखी जाती है,
उस जगह पर
दिमाग की सारी नसें आकर मिलती हैं।
इससे दिमाग स्थ‍िर रहता है
और
इंसान को क्रोध नहीं आता एवं
सोचने की क्षमता बढ़ती है।

10-
*व्रत रखना*

कोई भी पूजा-पाठ, त्योहार होता है तो
लोग व्रत रखते हैं।

*वैज्ञानिक तर्क-*

आयुर्वेद के अनुसार
व्रत करने से
पाचन क्रिया अच्छी होती है और
फलाहार लेने से
शरीर का डीटॉक्सीफिकेशन होता है
यानी
 उसमें से खराब तत्व बाहर निकलते हैं।
 शोधकर्ताओं के अनुसार व्रत करने से
कैंसर का खतरा कम होता है।
हृदय संबंधी रोगों,मधुमेह,आदि रोग भी
जल्दी नहीं लगते।

11-
*चरण स्पर्श करना*

हिंदू मान्यता के अनुसार
जब भी आप किसी बड़े से मिलें तो
उसके चरण स्पर्श करें।
यह हम बच्चों को भी सिखाते हैं
ताकि वे बड़ों का आदर करें।
*वैज्ञानिक तर्क-*

मस्त‍िष्क से निकलने वाली ऊर्जा
हाथों और सामने वाले पैरों से होते हुए
एक चक्र पूरा करती है।
इसे
कॉसमिक एनर्जी का प्रवाह कहते हैं।
इसमें दो प्रकार से ऊर्जा का प्रवाह होता है,
या तो
बड़े के पैरों से होते हुए छोटे के हाथों तक
 या फिर
छोटे के हाथों से बड़ों के पैरों तक।

12-
*क्यों लगाया जाता है सिंदूर*

सुहागिन हिंदू महिलाएँ सिंदूर लगाती हैं।
*वैज्ञानिक तर्क-*
सिंदूर में
हल्दी,चूना और मरकरी होता है,
यह मिश्रण
शरीर के रक्तचाप को नियंत्रित करता है।
चूँकि 
इससे यौन उत्तेजनाएँ भी बढ़ती हैं
इसीलिये
विधवा औरतों के लिये
सिंदूर लगाना वर्जित है।
इससे स्ट्रेस कम होता है।

13-
*तुलसी के पेड़ की पूजा*

तुलसी की पूजा करने से घर में समृद्ध‍ि आती है।
सुख शांति बनी रहती है। 
*वैज्ञानिक तर्क-*
 तुलसी इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है।
लिहाजा अगर घर में पेड़ होगा तो
इसकी पत्त‍ियों का इस्तेमाल भी होगा और
उससे बीमारियाँ दूर होती हैं।

हिंदू परम्पराओं से जुड़े ये वैज्ञानिक तर्क सहेज कर रखें

Thursday, 24 September 2020

कलयुग का ज्ञान

युधिष्ठिर को कलयुग का ज्ञान था कि क्या होगा ?

पाँचो पाण्डव एवं द्रोपदी जंगल मे छूपने का स्थान ढूंढ रहे थे। उधर शनिदेव की आकाश मंडल से पाण्डवों पर नजर पड़ी शनिदेव के मन विचार आया कि इन 5 में बुद्धिमान कौन है परीक्षा ली जाय ।शनिदेव ने एक माया का महल बनाया कई योजन दूरी में उस महल के चार कोने थे, पूरब, पश्चिम, उतर, दक्षिण।

1--- अचानक भीम की नजर महल पर पड़ी और वो आकर्षित हो गया, भीम, यधिष्ठिर से बोला- भैया मुझे महल देखना है भाई ने कहा जाओ। भीम महल के द्वार पर पहुंचा वहाँ शनिदेव दरबान के रूप में खड़े थे, भीम बोला- मुझे महल देखना है!

 शनिदेव ने कहा- महल की कुछ शर्त है ।

1– शर्त महल में चार कोने हैं आप एक ही कोना देख सकते हैं।
2-शर्त महल में जो देखोगे उसकी सार सहित व्याख्या करोगे।
3-शर्त अगर व्याख्या नहीं कर सके तो कैद कर लिए जाओगे।

 भीम ने कहा- मैं स्वीकार करता हूँ ऐसा ही होगा। और वह महल के पूर्व छोर की ओर गया । वहां जाकर उसने अद्भूत पशु पक्षी और फूलों एवं फलों से लदे वृक्षों का नजारा देखा, आगे जाकर देखता है कि तीन कुंए है अगल-बगल में छोटे कुंए और बीच में एक बडा कुआ। बीच वाला बड़े कुंए में पानी का उफान आता है और दोनों छोटे खाली कुओं को पानी से भर देता है। फिर कुछ देर बाद दोनों छोटे कुओं में उफान आता है तो खाली पड़े बड़े कुंए का पानी आधा रह जाता है इस क्रिया को भीम कई बार देखता है पर समझ नहीं पाता और लौटकर दरबान के पास आता है।

 दरबान – क्या देखा आपने ?

 भीम- महाशय मैंने पेड़ पौधे पशु पक्षी देखा वो मैंने पहले कभी नहीं देखा था जो अजीब थे। एक बात समझ में नहीं आई छोटे कुंए पानी से भर जाते हैं बड़ा क्यों नहीं भर पाता ये समझ में नहीं आया।

 दरबान – आप शर्त के अनुसार बंदी हो गये हैं और बंदी घर में बैठा दिया।

2---अर्जुन आया बोला- मुझे महल देखना है, दरबान ने शर्त बता दी और अर्जुन पश्चिम वाले छोर की तरफ चला गया। आगे जाकर अर्जुन क्या देखता है।

एक खेत में दो फसल उग रही थी एक तरफ बाजरे की फसल दूसरी तरफ मक्का की फसल । बाजरे के पौधे से मक्का निकल रही तथा मक्का के पौधे से बाजरी निकल रही । अजीब लगा कुछ समझ नहीं आया वापिस द्वार पर आ गया।

 दरबान ने पूछा क्या देखा,

अर्जुन बोला महाशय सब कुछ देखा पर बाजरा और मक्का की बात समझ में नहीं आई।

 दरबान ने कहा शर्त के अनुसार आप बंदी हैं ।

 3---नकुल आया बोला मुझे महल देखना है। फिर वह उत्तर दिशा की और गया वहाँ उसने देखा कि बहुत सारी सफेद गायें जब उनको भूख लगती है तो अपनी छोटी बछियों का दूध पीती है उसे कुछ समझ नहीं आया द्वार पर आया ।

 दरबान ने पूछा क्या देखा ?

 नकुल बोला महाशय गाय बछियों का दूध पीती है यह समझ नहीं आया तब उसे भी बंदी बना लिया।

 4---सहदेव आया बोला मुझे महल देखना है और वह दक्षिण दिशा की और गया अंतिम कोना देखने के लिए क्या देखता है वहां पर एक सोने की बड़ी शिला एक चांदी के सिक्के पर टिकी हुई डगमग डोले पर गिरे नहीं छूने पर भी वैसे ही रहती है समझ नहीं आया वह वापिस द्वार पर आ गया और बोला सोने की शिला की बात समझ में नहीं आई तब वह भी बंदी हो गया।

 चारों भाई बहुत देर से नहीं आये तब युधिष्ठिर को चिंता हुई वह भी द्रोपदी सहित महल में गये। भाइयों के लिए पूछा तब दरबान ने बताया वो शर्त अनुसार बंदी है।

 युधिष्ठिर बोला भीम तुमने क्या देखा ? भीम ने कुंऐ के बारे में बताया

तब युधिष्ठिर ने कहा- यह कलियुग में होने वाला है एक बाप दो बेटों का पेट तो भर देगा परन्तु दो बेटे मिलकर एक बाप का पेट नहीं भर पायेंगे। भीम को छोड़ दिया।

 अर्जुन से पुछा तुमने क्या देखा ? उसने फसल के बारे में बताया

युधिष्ठिर ने कहा- यह भी कलियुग में होने वाला है। वंश परिवर्तन अर्थात ब्राह्मण के घर शूद्र की लड़की और शूद्र के घर बनिए की लड़की ब्याही जायेंगी। अर्जुन भी छूट गया।

 नकुल से पूछा तुमने क्या देखा तब उसने गाय का वृतान्त बताया ।

 तब युधिष्ठिर ने कहा- कलियुग में माताऐं अपनी बेटियों के घर में पलेंगी बेटी का दाना खायेंगी और बेटे सेवा नहीं करेंगे। तब नकुल भी छूट गया।

 सहदेव से पूछा तुमने क्या देखा, उसने सोने की शिला का वृतांत बताया,

 तब युधिष्ठिर बोले- कलियुग में पाप धर्म को दबाता रहेगा परन्तु धर्म फिर भी जिंदा रहेगा खत्म नहीं होगा।

आज के कलयुग में यह सारी बातें सच साबित हो रही है

Saturday, 19 September 2020

प्रारब्ध

कैसे एक गृहणी को खेत से हीरे जवारात के मटके मिले 

एक गृहस्थ भक्त अपनी जीविका का आधा भाग घर में दो दिन के खर्च के लिए पत्नी को देकर अपने गुरुदेव के पास गया । 

दो दिन बाद उसने अपने गुरुदेव को निवेदन किया के अभी मुझे घर जाना है। मैं धर्मपत्नी को दो ही दिन का घर खर्च दे पाया हूं । घर खर्च खत्म होने पर मेरी पत्नी व बच्चे कहाँ से खायेंगे 

गुरुदेव के बहुत समझाने पर भी वो नहीं रुका। तो उन्होंने उसे एक चिट्ठी लिख कर दी। और कहा कि रास्ते में मेरे एक भक्त को देते जाना। 

वह चिट्ठी लेकर भक्त के पास गया। उस चिट्ठी में लिखा था कि जैसे ही मेरा यह भक्त तुम्हें ये खत दे तुम इसको 6 महीने के लिए मौन साधना की सुविधा वाली जगह में बंद कर देना। 

उस गुरु भक्त ने वैसे ही किया। वह गृहस्थी शिष्य 6 महीने तक अन्दर गुरु पद्धत्ति नियम, साधना करता रहा परंतु कभी कभी इस सोच में भी पड़ जाता कि मेरी पत्नी का क्या हुआ, बच्चों का क्या हुआ होगा ?? 

उधर उसकी पत्नी समझ गयी कि शायद पतिदेव वापस नहीं लौटेंगे।तो उसने किसी के यहाँ खेती बाड़ी का काम शुरू कर दिया। 

खेती करते करते उसे हीरे जवाहरात का एक मटका मिला। 

उसने ईमानदारी से वह मटका  खेत के मालिक को दे दिया। 

उसकी ईमानदारी से खुश होकर खेत के मालिक ने उसके लिए एक अच्छा मकान बनवा दिया व आजीविका हेतु ज़मीन जायदात भी दे दी । 

अब वह अपनी ज़मीन पर खेती कर के खुशहाल जीवन व्यतीत करने लगी। 

जब वह शिष्य 6 महिने बाद घर लौटा तो देखकर हैरान हो गया और मन ही मन गुरुदेव के करुणा कृपा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने लगा कि सद्गुरु ने मुझे यहाँ अहंकार मुक्त कर दिया । 

मै समझता था कि मैं नहीं कमाकर दूंगा तो मेरी पत्नी और बच्चों का क्या होगा ?? 

करनेवाला तो सब परमात्मा है। लेकिन झूठे अहंकार के कारण मनुष्य समझता है कि मैं करनेवाला हूं। 

वह अपने गुरूदेव के पास पहुंचा और उनके चरणों में पड़ गया। गुरुदेव ने उसे समझाते हुए कहा बेटा हर जीव का अपना अपना प्रारब्ध  होता है और उसके अनुसार उसका जीवन यापन होता है। मैं भगवान के भजन में लग जाऊंगा तो मेरे घरवालों का क्या होगा ??  

मैं सब का पालन पोषण करता हूँ मेरे बाद उनका क्या होगा यह अहंकार मात्र है। 

वास्तव में जिस परमात्मा ने यह शरीर दिया है उसका भरण पोषण भी वही परमात्मा करता है। 

कहानी का सार है इंसान को कभी गरुर नही करना चाहिए कि मै ही हू सब करने वाला करता तो भगवान है। इंसान तो अपने अहंकार मे रहता है।

प्रारब्ध  पहले रच्यो पीछे भयो शरीर
तुलसी चिंता क्या करे भज ले श्री रघुवीर।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।

Wednesday, 16 September 2020

शंका कैसे पैदा होती है

शंका कैसे पैदा होती है 

एक सहेली ने दूसरी सहेली से पूछा:-  बच्चा पैदा होने की खुशी में तुम्हारे पति ने तुम्हें क्या तोहफा दिया ?
सहेली ने कहा - कुछ भी नहीं! 
उसने सवाल करते हुए पूछा कि क्या ये अच्छी बात है ? 
क्या उस की नज़र में तुम्हारी कोई कीमत नहीं ?

लफ्ज़ों का ये ज़हरीला बम गिरा कर वह सहेली दूसरी सहेली को अपनी फिक्र में छोड़कर चलती बनी।।
थोड़ी देर बाद शाम के वक्त उसका पति घर आया और पत्नी का मुंह लटका हुआ पाया।। 
फिर दोनों में झगड़ा हुआ।।
एक दूसरे को लानतें भेजी।। 
मारपीट हुई, और आखिर पति पत्नी में तलाक हो गया।।
जानते हैं प्रॉब्लम की शुरुआत कहां से हुई ? उस फिजूल जुमले से जो उसका हालचाल जानने आई सहेली ने कहा था।।

रवि ने अपने जिगरी दोस्त पवन से पूछा:- तुम कहां काम करते हो
पवन- फलां दुकान में।। 
रवि- कितनी तनख्वाह देता है मालिक?
पवन-18 हजार।।
रवि-18000 रुपये बस, तुम्हारी जिंदगी कैसे कटती है इतने पैसों में ?
पवन- (गहरी सांस खींचते हुए)- बस यार क्या बताऊं।।
मीटिंग खत्म हुई, कुछ दिनों के बाद पवन अब अपने काम से बेरूखा हो गया।। और तनख्वाह बढ़ाने की डिमांड कर दी।। जिसे मालिक ने रद्द कर दिया।। पवन ने जॉब छोड़ दी और बेरोजगार हो गया।। पहले उसके पास काम था अब काम नहीं रहा।।

एक साहब ने एक शख्स से कहा जो अपने बेटे से अलग रहता था।। तुम्हारा बेटा तुमसे बहुत कम मिलने आता है।। क्या उसे तुमसे मोहब्बत नहीं रही?
बाप ने कहा बेटा ज्यादा व्यस्त रहता है, उसका काम का शेड्यूल बहुत सख्त है।। उसके बीवी बच्चे हैं, उसे बहुत कम वक्त मिलता है।।
पहला आदमी बोला- वाह!! यह क्या बात हुई, तुमने उसे पाला-पोसा उसकी हर ख्वाहिश पूरी की, अब उसको बुढ़ापे में व्यस्तता की वजह से मिलने का वक्त नहीं मिलता है।। तो यह ना मिलने का बहाना है।।
इस बातचीत के बाद बाप के दिल में बेटे के प्रति शंका पैदा हो गई।। बेटा जब भी मिलने आता वो ये ही सोचता रहता कि उसके पास सबके लिए वक्त है सिवाय मेरे।।

याद रखिए जुबान से निकले शब्द दूसरे पर बड़ा गहरा असर डाल देते हैं।। बेशक कुछ लोगों की जुबानों से शैतानी बोल निकलते हैं।। 

हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में बहुत से सवाल हमें बहुत मासूम लगते हैं।।जैसे-
तुमने यह क्यों नहीं खरीदा।।
तुम्हारे पास यह क्यों नहीं है।।
तुम इस शख्स के साथ पूरी जिंदगी कैसे चल सकती हो।।
तुम उसे कैसे मान सकते हो।।
वगैरा वगैरा।।
इस तरह के बेमतलबी फिजूल के सवाल नादानी में या बिना मकसद के हम पूछ बैठते हैं।।
जबकि हम यह भूल जाते हैं कि हमारे ये सवाल सुनने वाले के दिल में 
नफरत या मोहब्बत का कौन सा बीज बो रहे हैं।।
आज के दौर में हमारे इर्द-गिर्द, समाज या घरों में जो टेंशन टाइट होती जा रही है, उनकी जड़ तक जाया जाए तो अक्सर उसके पीछे किसी और का हाथ होता है।। 
वो ये नहीं जानते कि नादानी में या जानबूझकर बोले जाने वाले जुमले किसी की ज़िंदगी को तबाह कर सकते हैं।।
ऐसी हवा फैलाने वाले हम ना बनें।। 
लोगों के घरों में अंधे बनकर जाओ और वहां से गूंगे बनकर निकलो।।

      
          
आंख बंद करके एक बार विचार जरूर करें।

Saturday, 9 May 2020

नफरत का परिणाम

।।नफरत का परिणाम।।
समुन्द्र में भारण्ड नाम का एक विचित्र पक्षी रहता था,जिसके दो मुख व एक पेट था।एक दिन भारण्ड समुन्द्र में नहा रहा था कि एक छोटा-सा फल तैरता हुआ  आया और एक मुख ने उसे अपनी जीभ पर रखकर खाया तो वह फल बड़ा ही मीठा लगा तो वह अपने श्रीमुख से बोला,"ओह, कितना मीठा है यह फल! आज तक इतना स्वादिष्ट फल कभी खाने को नही मिला।"
दूसरे मुख ने जब यह सब सुना तो उसने अपना मुख बिगाड़ते हुए बोला,"अरे नीच,तू बड़ा स्वार्थी है।तूने मुझे उस फल का स्वाद भी नही कराया।"
पहला मुख हँसकर बोला,"अरे,तो इतना बिगड़ता क्यों है?सोच तो,मैं और तू क्या अलग-अलग है?चाहे मैं खाऊँ, चाहे तू खाए, बात एक ही है क्योंकि पेट तो दोनों का एक ही है।क्यो बेवजह अपने-पराए का भेदभाव खड़ा करता है।?"
दूसरे मुख ने प्रत्युत्तर में कुछ नही कहा लेकिन मन ही मन पहले मुख से खूब नफरत करने लगा और इस अपमान का बदला लेने का उपाय सोचने लगा।एक दिन उसके हाथ एक विषफल आया और पहले मुख को दिखाकर बोला,"अरे दुष्ट!देख मुझे भी आज एक फल मिला है और मैं भी तुझे कुछ नही दूँगा।"
पहला मुख चिल्लाया,"अरे भैया!यह क्या गजब करता है?इसे मत खा।यह विषफल है।इसके खाने से मैं ही नहीं तू भी मर जायेगा।"
दूसरा मुख बोला,"कुछ भी हो ,मैं इस फल को जरूर खाऊंगा और तेरे अपमान का बदला लूँगा।तभी मुझे शांति मिलेगी।बाद में मरु या जीऊं,इसकी मुझे चिंता नही।"
पहले मुख ने बहुत अनुनय-विनय किया लेकिन दूसरे मुख ने उसकी एक न सुनी और विषफल खा ही लिया।परिणाम वही हुआ,जो होना था।फल का विष पेट में जाकर फैल गया और  भारण्ड पक्षी छटपटाकर मर गया।
इस कहानी से सीख मिलती है कि  नफरत-ईर्ष्या से सदा हानि ही होती है। संत-महापुरुष और सज्जन लोग अपने जीवन में कदापि किसी से नफरत नही करते है।वे अजातशत्रु बनकर अपना जीवन खुशी से जीते हैं और जीवन में खूब यश-कीर्ति पाते हैं।

Saturday, 25 April 2020

Lord Parshurama

अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभिषण:।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः ।।
Lord Parshurama is the sixth avatar of Vishnu in Hinduism. Born as a brahmin, Parashurama carried traits of a Kshatriya and is often regarded as a Brahmin-Kshatriya. He carried a number of Kshatriya traits, which included aggression, warfare and valor; also, serenity, prudence and patience. He, along with only Hanuman and Indrajita, is considered to be one of the very few Atimaharathi warriors ever born on Earth. Like other incarnations of Vishnu, he was foretold to appear at a time when overwhelming evil prevailed on earth. The Kshatriya class, with weapons and power, had begun to abuse their power, take what belonged to others by force and tyrannize people. Parashurama corrects the cosmic equilibrium by destroying these Kshatriya warriors.

According to Hindu legends, Parashurama was born to a Brahmin sage Jamadagni and his wife Renuka, living in a hut. They have a celestial cow called Surabhi which gives all they desire. A king named Kartavirya Arjuna learns about it and wants it. He asks Jamadagni to give it to him, but the sage refuses. While Parashurama is away from the hut, the king takes it by force. Parashurama learns about this crime, and is upset. With his axe in his hand, he challenges the king to battle. They fight, and Parushama kills the king, according to the Hindu History. The warrior class challenges him, and he kills all his challengers. The legend likely has roots in the ancient conflict between the Brahmin varna (class), with religious duties, and the Kshatriya varna, with warrior and enforcement roles.

Friday, 17 April 2020

दानी कर्ण और चंचल मन।

।।दानी कर्ण और चंचल मन।।
महाभारत में कर्ण की एक कहानी है।एक दिन कर्ण तेल से स्नान कर रहे थे।किसी ने उनसे तेल का सोने का पात्र मांगा और कर्ण ने तुरंत बाएं हाथ से पात्र दे दिया। पात्र लेने वाले ने आपत्ति जताई कि "बाएं हाथ से कुछ सामान देना सही नही है।" यह सुनकर कर्ण ने स्पष्ट किया कि "उनका दायाँ हाथ तेल से छना हुआ है और जब तक वे हाथ धोने जाते,हो सकता है कि उनका चंचल मन कही पलट जाय।"
    कर्ण ने बड़े विनम्र भाव से कहा कि,"हे महाशय,आप मेरा यह स्वर्ण पात्र सहर्ष ग्रहण कीजिए।"
यदि जीवन में दान करना चाहते हो तो कर्ण की तरह कीजिए, क्योकि हममें से ज्यादातर लोगों का मन चंचल होता है जो हमारे अच्छे फैसले को पलट सकता है। 
दान की महिमा अपरंपार है।दान करने से स्वर्ग जैसा सुख और आनंद प्राप्त होता है।
आप सभी वंदनीय बंधुजन-बहनों को मेरा प्रातःकालीन सादर अभिनंदन-वन्दन सा।

मयूर पंख


  वनवास के दौरान माता सीताजी को 
पानी की प्यास लगी, तभी श्रीरामजी ने 
चारों ओर देखा, तो उनको दूर-दूर तक 
     जंगल ही जंगल दिख रहा था.
 कुदरत से प्रार्थना करी ~ हे जंगलजी !
     आसपास जहाँ कहीं पानी हो,
  वहाँ जाने का मार्ग कृपया सुझाईये.

      तभी वहाँ एक मयूर ने आकर  
 श्रीरामजी से कहा कि आगे थोड़ी दूर पर 
    एक जलाशय है. चलिए मैं आपका 
      मार्ग पथ प्रदर्शक बनता हूँ,  किंतु 
      मार्ग में हमारी भूल चूक होने की 
                 संभावना है.

     श्रीरामजी ने पूछा ~ वह क्यों ? 
      तब मयूर ने उत्तर दिया कि ~
   मैं उड़ता हुआ जाऊंगा और आप 
   चलते  हुए आएंगे, इसलिए मार्ग में 
 मैं अपना एक-एक पंख बिखेरता हुआ 
     जाऊंगा. उस के सहारे आप 
   जलाशय तक पहुँच ही जाओगे.

  इस बात को हम सभी जानते हैं कि
  मयूर के पंख, एक विशेष समय एवं 
    एक विशेष ऋतु में ही बिखरते हैं.
     अगर वह अपनी इच्छा विरुद्ध 
         पंखों को बिखेरेगा, तो 
        उसकी मृत्यु हो जाती है.

    और वही हुआ. अंत में जब मयूर 
   अपनी अंतिम सांस ले रहा होता है,
      उसने मन में ही कहा कि 
    वह कितना भाग्यशाली है, कि 
    जो जगत की प्यास बुझाते हैं, 
  ऐसे प्रभु की प्यास बुझाने का उसे 
          सौभाग्य प्राप्त हुआ.
        मेरा जीवन धन्य हो गया.
 अब मेरी कोई भी इच्छा शेष नहीं रही.

तभी भगवान श्रीराम ने मयूर से कहा कि 
 मेरे लिए तुमने जो मयूर पंख बिखेरकर, 
   मुझ पर जो ऋणानुबंध चढ़ाया है,
     मैं उस ऋण को अगले जन्म में 
              जरूर चुकाऊंगा ....

     *★मेरे सिर पर धारण करके★*

        तत्पश्चात अगले जन्म में 
     श्री कृष्ण अवतार में उन्होंने 
    अपने माथे पर मयूर पंख को 
      धारण कर वचन अनुसार 
    उस मयूर का ऋण उतारा था.

       

       तात्पर्य यही है कि  
 अगर भगवान को ऋण उतारने के लिए 
        पुनः जन्म लेना पड़ता है, तो 
  हम तो मानव हैं. न जाने हम कितने ही 
          ऋणानुबंध से बंधे हैं.
     उसे उतारने के लिए हमें तो 
   कई जन्म भी कम पड़ जाएंगे.
          ~~  अर्थात  ~~
    जो भी भला हम कर सकते हैं,
      इसी जन्म में हमें करना है।

Saturday, 11 April 2020

घास का तिनका

घास का तिनका

रामायण में एक घास के तिनके का भी रहस्य है, जो हर किसी को नहीं मालूम क्योंकि आज तक हमने हमारे ग्रंथो को 
सिर्फ पढ़ा, समझने की कोशिश नहीं की।
रावण ने जब माँ सीता जी का हरण करके लंका ले गया तब लंका मे सीता जी वट वृक्ष के नीचे बैठ कर चिंतन करने लगी। रावण बार बार आकर माँ सीता जी को धमकाता था, लेकिन माँ सीता जी कुछ नहीं बोलती थी। यहाँ तक की रावण ने श्री राम जी के वेश भूषा मे आकर माँ सीता जी को 
भ्रमित करने की भी कोशिश की लेकिन फिर भी सफल नहीं हुआ,
रावण थक हार कर जब अपने शयन कक्ष मे गया तो मंदोदरी ने उससे कहा आप  तो राम का वेश धर कर गये थे, फिर क्या हुआ?
रावण बोला- जब मैं राम का रूप लेकर सीता के समक्ष गया तो सीता मुझे नजर ही नहीं आ रही थी ।
रावण अपनी समस्त ताकत लगा चुका था लेकिन जिस जगत जननी माँ को आज तक कोई नहीं समझ सका, उन्हें रावण भी कैसे समझ पाता !
रावण एक बार फिर आया और बोला मैं तुमसे सीधे सीधे संवाद करता हूँ लेकिन तुम कैसी नारी हो कि मेरे आते ही घास का तिनका उठाकर उसे ही घूर-घूर कर देखने लगती हो,
क्या घास का तिनका तुम्हें राम से भी ज्यादा प्यारा है?  
रावण के इस प्रश्न को सुनकर माँ सीता जी बिलकुल चुप हो गयी और उनकी आँखों से आसुओं की धार बह पड़ी।
इसकी सबसे बड़ी वजह थी कि
जब श्री राम जी का विवाह माँ सीता जी के साथ हुआ,तब सीता जी का बड़े आदर सत्कार के साथ गृह प्रवेश भी हुआ। बहुत उत्सव मनाया गया।    *प्रथानुसार नव वधू विवाह पश्चात जब ससुराल आती है तो उसके हाथ से कुछ मीठा पकवान बनवाया जाता है, ताकि जीवन भर घर में मिठास बनी रहे।* 
इसलिए माँ सीता जी ने उस दिन अपने हाथों से घर पर खीर बनाई और समस्त परिवार, राजा दशरथ एवं तीनों रानियों  सहित चारों भाईयों और ऋषि संत भी भोजन पर आमंत्रित थे।
माँ सीता ने सभी को खीर परोसना शुरू किया, और भोजन शुरू होने ही वाला था की ज़ोर से एक हवा का झोका आया। सभी ने अपनी अपनी पत्तलें सम्भाली,सीता जी बड़े गौर से सब देख रही थी।
ठीक उसी समय राजा दशरथ जी की खीर पर एक छोटा सा घास का तिनका गिर गया, जिसे माँ सीता जी ने देख लिया। लेकिन अब खीर मे हाथ कैसे डालें? ये प्रश्न आ गया। माँ सीता जी ने दूर से ही उस तिनके को घूर कर देखा  वो जल कर राख की एक छोटी सी बिंदु बनकर रह गया। सीता जी ने सोचा 'अच्छा हुआ किसी ने नहीं देखा'।
लेकिन राजा दशरथ माँ सीता जी 
के इस चमत्कार को देख रहे थे। फिर भी दशरथ जी चुप रहे और अपने कक्ष पहुचकर माँ सीता जी को बुलवाया ।
फिर उन्होंने सीताजी से कहा कि मैंने आज भोजन के समय आप के चमत्कार को देख लिया था ।
आप साक्षात जगत जननी स्वरूपा हैं, लेकिन एक बात आप मेरी जरूर याद रखना।
आपने जिस नजर से आज उस तिनके को देखा था उस नजर से आप अपने शत्रु को भी कभी मत देखना।
इसीलिए माँ सीता जी के सामने जब भी रावण आता था तो वो उस घास के तिनके को उठाकर राजा दशरथ जी की बात याद कर लेती थी।
*तृण धर ओट कहत वैदेही*
*सुमिरि अवधपति परम् सनेही*

*यही है उस तिनके का रहस्य* ! 
इसलिये माता सीता जी चाहती तो रावण को उस जगह पर ही राख़ कर 
सकती थी, लेकिन राजा दशरथ जी को दिये वचन एवं भगवान श्रीराम को रावण-वध का श्रेय दिलाने हेतु वो शांत रही !
ऐसी विशालहृदया थीं हमारी जानकी माता !
जय हो प्रभु श्री राम जी की...
साभार
       ✍️  वेद प्रकाश पांडेय जी(सनातन धर्म प्रचारक)

Friday, 7 February 2020

19 ऊंट की कहानी

एक गाँव में एक व्यक्ति के पास 19 ऊंट थे। एक दिन उस व्यक्ति की मृत्यु हो गयी। मृत्यु के पश्चात वसीयत पढ़ी गयी। जिसमें लिखा था कि:मेरे 19 ऊंटों में से आधे मेरे बेटे को,19 ऊंटों में से एक चौथाई मेरी बेटी को, और 19 ऊंटों में से पांचवाँ हिस्सा मेरे नौकर को दे दिए जाएँ।सब लोग चक्कर में पड़ गए कि ये बँटवारा कैसे हो ?19 ऊंटों का आधा अर्थात एक ऊँट काटना पड़ेगा, फिर तो ऊँट ही मर जायेगा। चलो एक को काट दिया तो बचे 18 उनका एक चौथाई साढ़े चार- साढ़े चार. फिर?सब बड़ी उलझन में थे। फिर पड़ोस के गांव से एक बुद्धिमान व्यक्ति को बुलाया गया।वह बुद्धिमान व्यक्ति अपने ऊँट पर चढ़ कर आया, समस्या सुनी, थोडा दिमाग लगाया, फिर बोला इन 19 ऊंटों में मेरा भी ऊँट मिलाकर बाँट दो।सबने सोचा कि एक तो मरने वाला पागल था, जो ऐसी वसीयत कर के चला गया, और अब ये दूसरा पागल आ गया जो बोलता है कि उनमें मेरा भी ऊँट मिलाकर बाँट दो। फिर भी सब ने सोचा बात मान लेने में क्या हर्ज है।19+1=20 हुए।20 का आधा 10, बेटे को दे दिए।20 का चौथाई 5, बेटी को दे दिए।20 का पांचवाँ हिस्सा 4, नौकर को दे दिए।10+5+4=19 बच गया एक ऊँट, जो बुद्धिमान व्यक्ति का था...वो उसे लेकर अपने गॉंव लौट गया।इस तरह 1 उंट मिलाने से, बाकी 19 उंटो का बंटवारा सुख, शांति, संतोष व आनंद से हो गया।सो हम सब के जीवन में भी 19 ऊंट होते हैं।5 ज्ञानेंद्रियाँ(आँख, नाक, जीभ, कान, त्वचा)5 कर्मेन्द्रियाँ(हाथ, पैर, जीभ, मूत्र द्वार, मलद्वार)5 प्राण(प्राण, अपान, समान, व्यान, उदान)और4 अंतःकरण(मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार)कुल 19 ऊँट होते हैं। सारा जीवन मनुष्य इन्हीं 19 ऊँटो के बँटवारे में उलझा रहता है।और जब तक उसमें मित्र रूपी ऊँट नहीं मिलाया जाता यानी के दोस्तों के साथ.... सगे-संबंधियों के साथ जीवन नहीं जिया जाता, तब तक सुख, शांति, संतोष व आनंद की प्राप्ति नहीं हो सकती।

Monday, 20 January 2020

भोले नाथ

शंकर भोले नाथ का, रोज करे अभिषेक।
सिर पर धरते हाथ शिव, देते बुध्दि विवेक ।।

होने को अभिषेक था, हुआ राम वनवास।
रोते हैं नर नारियाँ, सरयू अवध उदास ।।

लंका पति के बाद में,मिला विभीषण ताज ।
किया राम अभिषेक है,दिया लंक का राज ।।

अभिषेक किये श्याम ने, मित्र सुदामा जान ।
वैभव तीनों लोक का, दिये कृष्ण भगवान ।।

भस्म से अभिषेक हो, महाकाल के भाल।
पल में विपदा टालते, हैं कालों के काल ।।