Wednesday, 14 March 2018

Amazing Reply

Amazing Reply

    Teacher to kid:
     If you tell me
     where is Lord Krishna ..?
     I will reward you
     Rs. 100........?
     ans:-Kid smiles
     and Reply gently:
     I will give you
     Millions If you
     tell me Where
     He is Not.....
  
    
     Hare Krishna

Thursday, 8 March 2018

5 मंदिरों का रहस्य

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की भारत में ऐसे शिव मंदिर है जो केदारनाथ से लेकर रामेश्वरम तक एक सीधी रेखा में बनाये गये है। आश्चर्य है कि हमारे पूर्वजों के पास ऐसा कैसा विज्ञान और तकनीक था जिसे हम आज तक समझ ही नहीं पाये? उत्तराखंड का केदारनाथ, तेलंगाना का कालेश्वरम, आंध्रप्रदेश का कालहस्ती, तमिलनाडू का एकंबरेश्वर, चिदंबरम और अंततः रामेश्वरम मंदिरों को 79° E 41’54” Longitude के भौगोलिक सीधी रेखा में बनाया गया है।
यह सारे मंदिर प्रकृति के 5 तत्वों में लिंग की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे हम आम भाषा में पंच भूत कहते है। पंच भूत यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष। इन्ही पांच तत्वों के आधार पर इन पांच शिव लिंगों को प्रतिष्टापित किया है। जल का प्रतिनिधित्व तिरुवनैकवल मंदिर में है, आग का प्रतिनिधित्व तिरुवन्नमलई में है, हवा का प्रतिनिधित्व कालाहस्ती में है, पृथ्वी का प्रतिनिधित्व कांचीपुरम में है और अतं में अंतरिक्ष या आकाश का प्रतिनिधित्व चिदंबरम मंदिर में है! वास्तु-विज्ञान-वेद का अद्भुत समागम को दर्शाते हैं ये पांच मंदिर।
भौगॊलिक रूप से भी इन मंदिरों में विशेषता पायी जाती है। इन पांच मंदिरों को योग विज्ञान के अनुसार बनाया गया था, और एक दूसरे के साथ एक निश्चित भौगोलिक संरेखण में रखा गया है। इस के पीछे निश्चित ही कॊई विज्ञान होगा जो मनुष्य के शरीर पर प्रभाव करता होगा। इन मंदिरों का करीब चार हज़ार वर्ष पूर्व निर्माण किया गया था जब उन स्थानों के अक्षांश और देशांतर को मापने के लिए कोई उपग्रह तकनीक उपलब्ध ही नहीं था। तो फिर कैसे इतने सटीक रूप से पांच मंदिरों को प्रतिष्टापित किया गया था? उत्तर भगवान ही जाने।
केदारनाथ और रामेश्वरम के बीच 2383 किमी की दूरी है। लेकिन ये सारे मंदिर लगभग एक ही समानांतर रेखा में पड़ते है। आखिर हज़ारों वर्ष पूर्व किस तकनीक का उपयॊग कर इन मंदिरों को समानांतर रेखा में बनाया गया है यह आज तक रहस्य ही है। श्रीकालहस्ती मंदिर में टिमटिमाते दीपक से पता चलता है कि वह वायु लिंग है। तिरूवनिक्का मंदिर के अंदरूनी पठार में जल वसंत से पता चलता है कि यह जल लिंग है। अन्नामलाई पहाड़ी पर विशाल दीपक से पता चलता है कि वह अग्नि लिंग है। कंचिपुरम के रेत के स्वयंभू लिंग से पता चलता है कि वह पृथ्वी लिंग है और चिदंबरम की निराकार अवस्था से भगवान के निराकारता यानी आकाश तत्व का पता लगता है।
अब यह आश्चर्य की बात नहीं तो और क्या है कि ब्रह्मांड के पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करनेवाले पांच लिंगो को एक समान रेखा में सदियों पूर्व ही प्रतिष्टापित किया गया है। हमें हमारे पूर्वजों के ज्ञान और बुद्दिमत्ता पर गर्व होना चाहिए कि उनके पास ऐसा विज्ञान और तकनीक था जिसे आधुनिक विज्ञान भी नहीं भेद पाया है। माना जाता है कि केवल यह पांच मंदिर ही नहीं अपितु इसी रेखा में अनेक मंदिर होगें जो केदारनाथ से रामेश्वरम तक सीधी रेखा में पड़ते है। इस रेखा को “शिव शक्ति अक्श रेखा” भी कहा जाता है। संभवता यह सारे मंदिर कैलाश को द्यान में रखते हुए बनाया गया हो जो 81.3119° E में पड़ता है!? उत्तर शिवजी ही जाने..

Monday, 5 March 2018

प्रकृति  का पहला  नियम

प्रकृति  का पहला  नियम* 
यदि खेत में  बीज न डालें जाएं  तो कुदरत  उसे घास-फूस  से  भर देती हैं ।
ठीक  उसी  तरह से  दिमाग  में सकारात्मक  विचार  न भरे  जाएँ  तो नकारात्मक  विचार  अपनी  जगह  बना ही लेती है ।

प्रकृति  का दूसरा  नियम
जिसके  पास  जो होता है  वह वही बांटता  है।
सुखी "सुख  "बांटता है
दुःखी  "दुःख " बांटता  है
ज्ञानी "ज्ञान" बांटता है
भ्रमित  "भ्रम "बांटता है
भयभीत"  भय "बांटता हैं

प्रकृति  का तिसरा नियम*
आपको  जीवन से जो कुछ भी मिलें  उसे पचाना सीखो क्योंकि
भोजन  न पचने  पर रोग बढते है।
पैसा न पचने  पर दिखावा बढता है
बात  न पचने पर चुगली  बढती है ।
प्रशंसा  न पचने पर  अंहकार  बढता है।
निंदा  न पचने पर  दुश्मनी  बढती है ।
राज न पचने पर  खतरा  बढता है ।
दुःख  न पचने पर  निराशा बढती है ।
और सुख न पचने पर  पाप बढता है ।
बात  कडुवी बहुत  है  पर सत्य  है

Thursday, 15 February 2018

तीनों नन्द किशोर

।।तूलसी वृक्ष ना जानिए,
                  गाय ना जानिए ढोर।।
।।माता-पिता मनुष्य ना जानिए,
                   ये तीनों नन्द किशोर।।

अर्थात: तूलसी को कभी वृक्ष नहीं
समझना चाहिए, और गाय को कभी
पशु ना समझे, तथा माता-पिता को
कभी मनुष्य ना समझें, क्योंकि ये तीनो
तो साक्षात भगवान का रूप हैं।

Wednesday, 14 February 2018

निर्वाण षटकम्

निर्वाण षटकम्

*मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहम्*
*न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे*
*न च व्योम भूमिर् न तेजो न वायु:*
*चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम्* ॥१॥

मैं मन नहीं हूँ, न बुद्धि ही, न अहंकार हूँ, न अन्तःप्रेरित वृत्ति;
मैं श्रवण, जिह्वा, नयन या नासिका सम पंच इन्द्रिय कुछ नहीं हूँ
पंच तत्वों सम नहीं हूँ (न हूँ आकाश, न पृथ्वी, न अग्नि-वायु हूँ)
वस्तुतः मैं चिर आनन्द हूँ, चिन्मय रूप शिव हूँ, शिव हूँ।

*न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु:*
*न वा सप्तधातुर् न वा पञ्चकोश:*
*न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू*
*चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम्* ॥२॥
मैं नहीं हूँ प्राण संज्ञा मुख्यतः न हूँ मैं पंच-प्राण स्वरूप ही,
सप्त धातु और पंचकोश भी नहीं हूँ, और न माध्यम हूँ
निष्कासन, प्रजनन, सुगति, संग्रहण और वचन का
वस्तुतः मैं चिर आनन्द हूँ, चिन्मय रूप शिव हूँ, शिव हूँ।

*न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ*
*मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:*
*न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष:*
*चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम्* ॥३॥

न मुझमें द्वेष है, न राग है, न लोभ है, न मोह,
न मुझमें अहंकार है, न ईर्ष्या की भावना
न मुझमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ही हैं,
वस्तुतः मैं चिर आनन्द हूँ, चिन्मय रूप शिव हूँ, शिव हूँ।

*न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम्*
*न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा: न यज्ञा:*
*अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता*
*चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम्* ॥४॥

न मुझमें पुण्य है न पाप है, न मैं सुख-दुख की भावना से युक्त ही हूँ
मन्त्र और तीर्थ भी नहीं, वेद और यज्ञ भी नहीं
मैं त्रिसंयुज (भोजन, भोज्य, भोक्ता) भी नहीं हूँ
वस्तुतः मैं चिर आनन्द हूँ, चिन्मय रूप शिव हूँ, शिव हूँ।

*न मृत्युर् न शंका न मे जातिभेद:*
*पिता नैव मे नैव माता न जन्म*
*न बन्धुर् न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य:*
*चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम्* ॥५॥

न मुझे मृत्य-भय है (मृत्यु भी कैसी?), न स्व-प्रति संदेह, न भेद जाति का
न मेरा कोई पिता है, न माता और न लिया ही है मैंने कोई जन्म
कोई बन्धु भी नहीं, न मित्र कोई और न कोई गुरु या शिष्य ही
वस्तुतः मैं चिर आनन्द हूँ, चिन्मय रूप शिव हूँ, शिव हूँ।

*अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ*
*विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्*
*न चासंगतं नैव मुक्तिर् न मेय:*
*चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम्* ॥६॥

मैं हूँ संदेह रहित निर्विकल्प, आकार रहित हूँ
सर्वव्याप्त, सर्वभूत, समस्त इन्द्रिय-व्याप्त स्थित हूँ  
न मुझमें मुक्ति है न बंधन; सब कहीं, सब कुछ, सभी क्षण साम्य स्थित
वस्तुतः मैं चिर आनन्द हूँ, चिन्मय रूप शिव हूँ, शिव हूँ।

*आचार्य शंकर और शिव-शंकर दोनों के चरणों में प्रणति! सभी को शिवरात्रि की शुभकामनाएँ*🙏🙏

Tuesday, 13 February 2018

रुद्राष्टकम्

रुद्राष्टकम्

       || त्राहि माम् शरणागतम् ||

         *नमामीशमीशान निर्वाणरूपं*
      *विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम*
      *निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं*
      *चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम्*
हे भगवन ईशान को मेरा प्रणाम ऐसे भगवान जो कि निर्वाण रूप हैं, जो कि महान ॐ के दाता हैं, जो सम्पूर्ण ब्रह्मांण में व्याप्त हैं, जो अपने आपको धारण किये हुए हैं। जिनके सामने गुण अवगुण का कोई महत्व नहीं, जिनका कोई विकल्प नहीं, जो निष्पक्ष हैं, जिनका आकर आकाश के सामान हैं जिसे मापा नहीं जा सकता, उनकी मैं उपासना करता हूँ।

    *निराकारमोङ्करमूलं तुरीयं*
   *गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशं*
*करालं महाकालकालं कृपालं*
     *गुणागारसंसारपारं नतोहम्*
जिनका कोई आकार नहीं, जो ॐ के मूल हैं, जिनका कोई राज्य नहीं, जो गिरी के वासी हैं, जो कि सभी ज्ञान, शब्द से परे हैं, जो कि कैलाश के स्वामी हैं, जिनका रूप भयावह हैं, जो कि काल के स्वामी हैं, जो उदार एवम् दयालु हैं, जो गुणों का खजाना हैं, जो पूरे संसार के परे हैं, उनके सामने मैं नत मस्तक हूँ।

      *तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभिरं*
      *मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरमं*
      *स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा*
      *लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा*
जो कि बर्फ के समान शील हैं, जिनका मुख सुंदर हैं, जो गौर रंग के हैं, जो गहन चिंतन में हैं, जो सभी प्राणियों के मन में हैं, जिनका वैभव अपार है, जिनकी देह सुंदर है, जिनके मस्तक पर तेज है जिनकी जटाओं में लहलहारती गंगा है, जिनके चमकते हुए मस्तक पर चाँद है, और जिनके कंठ पर सर्प का वास है।

      *चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं*
      *प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालमं*
      *मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं*
     *प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि*
जिनके कानों में बालियाँ हैं, जिनकी सुन्दर भौंहे और बड़ी-बड़ी आँखे हैं, जिनके चेहरे पर सुख का भाव है, जिनके कंठ में विष का वास है, जो दयालु हैं, जिनके वस्त्र शेर की खाल है, जिनके गले में मुंड की माला है, ऐसे प्रिय शंकर पूरे संसार के नाथ हैं, उनको मैं पूजता हूँ।

      *प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं*
      *अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं*
      *त्र्यःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं*
      *भजेहं भवानीपतिं भावगम्यम्*
जो भयंकर हैं, जो परिपक्व साहसी हैं, जो श्रेष्ठ हैं अखंड हैं जो अजन्मे हैं जो सहस्त्र सूर्य के सामान प्रकाशवान हैं, जिनके पास त्रिशूल है, जिनका कोई मूल नहीं है, जिनमें किसी भी मूल का नाश करने की शक्ति है, ऐसे त्रिशूल धारी माँ भगवती के पति जो प्रेम से जीते जा सकते हैं उन्हें मैं वन्दन करता हूँ।

      *कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी*
      *सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी* ।
      *चिदानन्दसंदोह मोहापहारी*
      *प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी*
जो काल के बंधे नहीं हैं, जो कल्याणकारी हैं, जो विनाशक भी हैं, जो हमेशा आशीर्वाद देते हैं और धर्म का साथ देते हैं, जो अधर्मी का नाश करते हैं, जो चित्त का आनंद हैं, जो जूनून हैं, जो मुझसे खुश रहे ऐसे भगवान जो कामदेव नाशी हैं, उन्हें मेरा प्रणाम।

      *न यावद्* *उमानाथपादारविन्दं*
      *भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्*।
     *न तावत्सुखं शान्ति* *सन्तापनाशं*
      *प्रसीदं प्रभो सर्वभूताधिवासं*
जो यथावत नहीं हैं, ऐसे उमा पति के चरणों में कमल वन्दन करता है, ऐसे भगवान को पूरे लोक के नर नारी पूजते हैं, जो सुख हैं, शांति हैं, जो सारे दु:खों का नाश करते हैं, जो सभी जगह वास करते हैं |

      *न जानामि योगं जपं नैव पूजां*
      *नतोहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम्*
      *जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं*
      *प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो*
मैं कुछ नहीं जानता, ना योग , ना ध्यान है, देव के सामने मेरा मस्तक झुकता है, सभी संसारिक कष्टों, दुःख दर्द से मेरी रक्षा करे. मेरी बुढ़ापे के कष्टों से रक्षा करें, मैं सदा ऐसे शिव शम्भु को प्रणाम करता हूँ।

भगवद्गीता यथार्थ गीता

भगवद्गीता यथार्थ गीता-----
-"जाति "भ्रांति एवं निवारण--------
संसार भर की असंख्य जातियां व मजहब लोक प्रदत्त हैं परमात्मा की देन नहीं ----------
लोहा पीटा तो लोहार
सोना पीटा तो सोनार
चमड़ा काटा तो चमार
कपड़ा धोया तो धोबी
कुंभ बनाया तो कुंभकार
ब्यवसाय किया तो बनिया
रक्षा में गया तो क्षत्रिय
पांडित्य में निपुण हुआ तो पंडित
ब्राम्हणत्व अर्जित किया तो ब्राम्हण
अल्पग्यानी हुआ तो क्षुद्र अर्थात शूद्र।                           गोपालन किया तो गोपाल
ये ब्यवसायों या योग्यता के नाम हैं या जातियां।
ये तो धंधों के नाम हैं जो उस समय की जरूरत थी आज यही काम मशीनों द्वारा सब कर रहे हैं।
अर्थात इनका स्तित्व खो चुका है।
🚩आईये देखते हैं भारतीय मनीषा में जाति का क्या स्वरूप है ----
🚩मनुष्य शरीर का उद्देश्य -------
-संसार की असंख्य जातियां,व सम्प्रदाय, परमात्मा की देन नहीं बल्कि उस समय के धंधों ब्यवसायों के नाम हैं। जिनका अब कोई महत्व नहीं रहा।
अयोध्या में सरयू के जिस राजघाट पर भगवान् राम स्नान करते थे वहीं चारो वरण के लोग नहाते थे।
🚩भगवान् राम ने एक भी ब्राम्हण का उद्धार नहीं किया बल्कि सबरी, केवट, रीछ बानरों का उद्धार किया जो उस समय हीन भावना से देखे जाते थे।                                
🚩भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं चतुर्वण्यं मया श्रृष्टम गुण कर्म विभागस:।।
अर्जुन चारो वर्णों की रचना मैने की है।
तो क्या समाज को चार भागों में बांट दिया।
श्री कृष्ण कहते हैं --नहीं गुंणो के आधार पर कर्म विभाजित किया है। न कि जातियां।

🚩कर्म प्रधान विश्व रचि राखा।
कर्म प्रधान है कर्म करके मनुष्य अपना उत्थान कर सकता है।
कर्म आराधना को कहा गया है।
🚩महापुरुष समदृष्टा होते हैं। महापुरुष सब ओर परमात्मा का विस्तार ही देखता है।
सियाराम मैं सब जग जानी।।
करहुं प्रणाम जोरि जुग पानी।।
जो ग्यानी है वह जीवों में भेद नहीं देखता।
रामचरित मानस में भी उल्लेख है इस चीज का।
🚩कामी, क्रोधी, लालची इनसे भक्ति न होय।। भक्ति करे कोई सूरमा जाति वरण कुल खोय।।
🚩ईश्वर: सर्व भूतानाम ह्रदय देशे अर्जुन तिष्ठती।।
गीता में भी उल्लेख है ईश्वर सभी प्राणियों के ह्रदय देश में निवास करता है।

बडे़ भाग मानुष तन पावा।।

🚩हमारे धर्म शास्त्र मनुस्य देंह का बड़ा महत्व बताते हैं।

🚩जाति वरण तो हमने यहां आकर बना लिया।
परमात्मा की निगाह में तो सब बराबर है।

🚩जाति पाति पूंछै न कोई हरि।।
का भजै शो हरि का होई।।

🚩चतुराई चूल्हे पडी घूरे पड़ा अचार।।
तुलसी राम भजे बिनु चारों वर्ण चमार।।

🚩अर्थात जो परमात्मा के किसी नाम राम अथवा ऊँ का जप नहीं करता वही नीच है।
ऐसा शास्त्रों में बताया गया है

🚩जाति न पूंछो साधु की पूंछ लीजियो ग्यान।।
मोल करो तलवार का पड़ी रहेन देव म्यान।।

समाज में गरीब अमीर की दीवार हमेशा रही है,, आगे भी रहेगी,, परंतु हमें समाज के हर ब्यक्ति को पूर्ण धर्मिक अधिकार देना होगा।।।। दोस्तों यह चिंतन 👆👆👆बहुत उपयोगी है ऊपर वाला लेख अवश्य पढें और अपने समाज में आपसी फूट समाप्त करके भाई चारे का माहौल बनाये नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब हम भारत में ही अल्पसंख्यक हो जायेंगे।।। यही परमात्मा का आदेश है।। यह चिंतन देश हित में है।।। जब तक हम समाज के अंतिम ब्यक्ति को धर्म धर्म की समानता नहीं देगे तब तक धर्मांतरण नहीं रुकेगा ।।।।बिदेसी मिसनरियां समाज के कुछ लोगों को बरगलाकर देश के विरुद्ध खड़ा कर रही हैं ।।।।यह कहकर कि तुम्हें जब हिंदू धर्म में कोई धार्मिक समानता नहीं मिल रही है ।तुम्हारे साथ भेदभाव होता है तो तुम हमारे धर्म में शामिल हो जाओ हम तुम्हें पूर्णतः अधिकार देंगे ।।।हमें विधर्मियो के इस सणयंत्र को नाकाम करना होगा ।।।