Thursday, 16 February 2017

ऐ परिंदे...

ऐ परिंदे...!!*
*यूँ ज़मीं पर बैठकर क्यों*
*आसमान देखता है..*
*पंखों को खोल, क्योंकि,*
*ज़माना सिर्फ़ उड़ान देखता है !!*

*लहरों की तो फ़ितरत ही है*
*शोर मचाने की..*
*लेकिन मंज़िल उसी की होती है,*
*जो नज़रों से तूफ़ान देखता है !!*
   

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