Tuesday, 13 February 2018

शिव--स्तवन

।।  शिव--स्तवन।।
नमामि नाथ चन्द्रमौलि शीश गंग राजितं  |
त्रिनेत्र भाल शोभितं पिनाक हस्त साजितं  ||
ललाम कंठ कालकूट भस्म अंग सोहती |
विराजमान संग गौर कांति चित्त मोहती ||1||
गले अनूप नाग हार मुंड माल राजती |
सुदेह बाघ अम्बरं जटाज शीश साजती ||
निवास शैल शिख्खरे सवार नन्दि आप हो |
दया निधान आप ही हरो हमेश ताप हो ||2||
नमामि कष्ट भंजनं दयालु मोक्ष दायकं |
नमामि भक्त वत्सलं रहो सदा सहायकं ||
नमामि लोक तारणं शरण्य पाद पंकजं |
हरो हरो हरो हरे महा महा महा अघं ||3||
उमा गणेश कार्तिकेय साथ आप राजते |
अपार भाव सेव धार नांदिया सुशोभिते ||
महा महा महा सुखं ददाति विश्व पालकं |
क्षणं क्षणं क्षणं हरे अनेक भक्त पातकं ||4||
अनंत रूप धारितं अरूप नाथ आप हो |
अनाथ नाथ आप ही हमेश दीन साथ हो ||
करो करो करो दया पुकार चित्त धारिये |
महा समंद बीच हैं महेश आप तारिये ||5||
खड़े सुरेश लोकपाल देव जोड़ हाथ हैं |
कराल काल आपके अधीन भूतनाथ है |
महा अगाध और क्रूर घोर लोक जाल है |
उबार आप लीजिए अबोध तुज्ज बाल हैं ||6||
सुनो पुकार ओंमकार नाथ ध्यान दीजिये |
हरे मखारि सोमनाथ कान टेर कीजिए ||
नहीं नहीं नहीं हमें न और कोई आसरा |
उदार आशुतोष ना समान आप दूसरा ||7||
हमें न अर्चना पता न ज्ञान ध्यान ज्ञात है |
करो हमेश पालना अबोध बाल तात हैं  ||
नमामि नाथ बार बार संग साँस तार के |
गहो दयालु बाँह को उबारने मझार के ||8||

सहित उमा शिव का सदा, धरिये दिल में ध्यान |
अवडर दानी सम अवर, करत न जग कल्याण ||

शिवाष्टकम्

हर हर महादेव

॥ अथ श्री शिवाष्टकं ॥
प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं
जगन्नाथनाथं सदानन्दभाजाम् ।
भवद्भव्यभूतेश्वरं भूतनाथं
शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ १॥

गले रुण्डमालं तनौ सर्पजालं
महाकालकालं गणेशाधिपालम् ।
जटाजूटभङ्गोत्तरङ्गैर्विशालं
शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ २॥

मुदामाकरं मण्डनं मण्डयन्तं
महामण्डल भस्मभूषधरंतम् ।
अनादिह्यपारं महामोहहारं
शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ३॥

तटाधो निवासं महाट्टाट्टहासं
महापापनाशं सदासुप्रकाशम् ।
गिरीशं गणेशं महेशं सुरेशं
शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ४॥

गिरिन्द्रात्मजासंग्रहीतार्धदेहं
गिरौ संस्थितं सर्वदा सन्नगेहम् ।
परब्रह्मब्रह्मादिभिर्वन्ध्यमानं
शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ५॥

कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं
पदाम्भोजनम्राय कामं ददानम् ।
बलीवर्दयानं सुराणां प्रधानं
शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ६॥

शरच्चन्द्रगात्रं गुणानन्द पात्रं
त्रिनेत्रं पवित्रं धनेशस्य मित्रम् ।
अपर्णाकलत्रं चरित्रं विचित्रं
शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ७॥

हरं सर्पहारं चिता भूविहारं
भवं वेदसारं सदा निर्विकारम् ।
श्मशाने वदन्तं मनोजं दहन्तं
शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ८॥

स्तवं यः प्रभाते नरः शूलपाणे
पठेत् सर्वदा भर्गभावानुरक्तः ।
स पुत्रं धनं धान्यमित्रं कलत्रं
विचित्रं समासाद्य मोक्षं प्रयाति ॥ ९॥

      ॥ इति शिवाष्टकम्

    हर हर महादेव

Saturday, 3 February 2018

गुरुर्ब्रह्मा

एक शिष्य ने बहुत प्यारी बात कही:---
गुरूजी,
जब आप हमारी *'शँका'* दूर करते हैँ तब आप *"शंकर"* लगते हैँ
- जब *'मोह'* दूर करते हैँ तो *"मोहन"* लगते हैँ
जब *'विष'* दूर करते हैँ तो *"विष्णु"* लगते हैँ
जब *'भ्रम'* दूर करते हैँ तो *"ब्रह्मा"* लगते हैँ
जब *'दुर्गति'* दूर करते हैँ तो *"दुर्गा"* लगते हैँ
जब *'गरूर'* दूर करते हैँ तो
*"गुरूजी"* लगते हैँ
इसीलिए तो कहा है।
*।।गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:*
*गुरु साक्षात् परब्रम्ह तस्मे श्री गुरुवे नमः।।

          

Sunday, 14 January 2018

औरंगजेब की कब्र

औरंगजेब_की_कब्र

संत सिंह मसकीन साहब सिख पंथ के बड़े विद्वान थे। उनका एक बार औरंगजेब की मजार पर जाना हुआ, उस समय का प्रसंग है।

ज्ञानी संत सिंह मस्कीन जी के मुगल शहंशाह औरंगज़ेब के बारे में उन्हीं की जुबानी ....

कुछ अरसा पहले मुझे औरंगाबाद जाने का मौक़ा मिला । कई बार हजूर साहिब (महाराष्ट्र) जाते समय उधर से ही जाना होता था ।

एक बार प्रबन्धकों ने कहा ज्ञानी जी यहाँ से 7-8 किलोमीटर की दूरी पर खुलदाबाद में औरंगज़ेब की क़ब्र है । अगर आप चाहें तो आप को दिखा लायें । कभी उधर से गुज़रते हुए देखी भी थी फिर देखने की इच्छा हुई चलो देख आते हैं ।

हम वहाँ पहुँचे । वहाँ पर मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेर शरीफ़ वाले के पड़पोते के मक़बरे के नज़दीक ही औरंगज़ेब की कच्ची क़ब्र है । निज़ाम हैदराबाद ने चारों ओर जालीनुमा संगमरमर लगवा दिया है ।

मैंने उस क़ब्र को देखा, सामने पत्थर की तख्ती पर कुछ शेर लिखे थे और कुछ थोड़ा बहुत समकालीन इतिहास लिखा था, उसको मैंने नोट किया ।

जैसे ही मैं वहाँ से चलने लगा, वहाँ देखभाल के लिये जो आदमी (मजौर) बैठा था, मुझसे बोला सरदार जी कुछ पैसे दे के जाओ । मैंने पूछा तुम्हारी आजीविका का कोई मसला है ?

उसने कहा नहीं । यहाँ जो भी लोग (जायरीन) आते हैं, आप जैसे लोग आते हैं, हमें कुछ दे के जाते हैं । उन्हीं पैसों से रात को तेल लाकर यहाँ दिया जलता है। इसलिये तेल के लिए कुछ पैसे चाहिये । आप भी हमें तेल के लिये कुछ पैसे दे कर जाओ ।

मैंने जेब से कुछ पैसे निकाले और व्यंग्यात्मक अंदाज़ में कहा : ये लो पैसे, ले आना तेल और जला देना औरंगज़ेब की क़ब्र (मडी) पे दिया । उसके बोल मैंने अपनी डायरी में लिख लिये के कहीं मैं भूल ना जाऊँ । मेरे अन्दर से एक आवाज़ आई : "ऐ औरंगज़ेब, तेरी क़ब्र पर रात को दिया जलाने के लिये तेरी क़ब्र पर बैठा मजौर आने वाले यात्रियों से पैसे माँगता है ...
...परन्तु जिस सतगुरू को तूने दिल्ली की चाँदनी चौक में शहीद किया (करवाया), जिन साहिबजादों को तूने सरहन्द (फतेहगढ साहिब पंजाब) में ज़िन्दा दीवारों में चिनवा दिया...
...जा कर देख वहाँ पैसे के दरिया बहते हैं । भूखों को भोजन मिल रहा है । दिन रात कथा- कीर्तन के परवाह चल रहे हैं । लोग सुन-सुन कर रबी सरूर का आनंद प्राप्त कर रहे हैं ।"

और ये सब देख कर कहना पड़ता है : "कूड़ निखुटे नानका ओड़कि सचि रही" ।।२।। ( गुरू ग्रन्थ साहिब अंग 953 ) अर्थात "सच ने हमेशा क़ायम रहना है । सच की आवाज़ हमेशा गूँजती रहेगी । झूठ की अन्ततः हार होती है।"

       बोलो सतनाम श्री वाहेगुरु

Sunday, 7 January 2018

तुलसी साथी विपत्ति के..

तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक|
साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक ||

अर्थात: "तुलसीदास जी कहते हैं, किसी विपत्ति के समय आपको ये सात गुण बचायेंगे:
आपका ज्ञान या शिक्षा, आपकी विनम्रता, आपकी बुद्धि, आपके भीतर का साहस, आपके अच्छे कर्म, सच बोलने की आदत और भगवान राम में विश्वास !!"

भगवान शिव से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

भगवान शिव से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
★ भगवान शिव का कोई माता-पिता नही है. उन्हें अनादि माना गया है. मतलब, जो हमेशा से था. जिसके जन्म की कोई तिथि नही.
★ कथक, भरतनाट्यम करते वक्त भगवान शिव की जो मूर्ति रखी जाती है उसे नटराज कहते है.
★ किसी भी देवी-देवता की टूटी हुई मूर्ति की पूजा नही होती. लेकिन शिवलिंग चाहे कितना भी टूट जाए फिर भी पूजा जाता है.
★ शंकर भगवान की एक बहन भी थी अमावरी. जिसे माता पार्वती की जिद्द पर खुद महादेव ने अपनी माया से बनाया था.
★ भगवान शिव और माता पार्वती का 1 ही पुत्र था. जिसका नाम था कार्तिकेय. गणेश भगवान तो मां पार्वती ने अपने उबटन (शरीर पर लगे लेप) से बनाए थे.
★ भगवान शिव ने गणेश जी का सिर इसलिए काटा था क्योकिं गणेश ने शिव को पार्वती से मिलने नही दिया था. उनकी मां पार्वती ने ऐसा करने के लिए बोला था.
★ भोले बाबा ने तांडव करने के बाद सनकादि के लिए चौदह बार डमरू बजाया था. जिससे माहेश्वर सूत्र यानि संस्कृत व्याकरण का आधार प्रकट हुआ था.
★ शंकर भगवान पर कभी भी केतकी का फुल नही चढ़ाया जाता. क्योंकि यह ब्रह्मा जी के झूठ का गवाह बना था.
★ शिवलिंग पर बेलपत्र तो लगभग सभी चढ़ाते है. लेकिन इसके लिए भी एक ख़ास सावधानी बरतनी पड़ती है कि बिना जल के बेलपत्र नही चढ़ाया जा सकता.
★ शंकर भगवान और शिवलिंग पर कभी भी शंख से जल नही चढ़ाया जाता. क्योकिं शिव जी ने शंखचूड़ को अपने त्रिशूल से भस्म कर दिया था. आपको बता दें, शंखचूड़ की हड्डियों से ही शंख बना था.
★ भगवान शिव के गले में जो सांप लिपटा रहता है उसका नाम है वासुकि. यह शेषनाग के बाद नागों का दूसरा राजा था. भगवान शिव ने खुश होकर इसे गले में डालने का वरदान दिया था.
★ चंद्रमा को भगवान शिव की जटाओं में रहने का वरदान मिला हुआ है.
★ नंदी, जो शंकर भगवान का वाहन और उसके सभी गणों में सबसे ऊपर भी है. वह असल में शिलाद ऋषि को वरदान में प्राप्त पुत्र था. जो बाद में कठोर तप के कारण नंदी बना था.
★ गंगा भगवान शिव के सिर से क्यों बहती है ? देवी गंगा को जब धरती पर उतारने की सोची तो एक समस्या आई कि इनके वेग से तो भारी विनाश हो जाएगा. तब शंकर भगवान को मनाया गया कि पहले गंगा को अपनी ज़टाओं में बाँध लें, फिर अलग-अलग दिशाओं से धीरें-धीरें उन्हें धरती पर उतारें.
★ शंकर भगवान का शरीर नीला इसलिए पड़ा क्योंकि उन्होने जहर पी लिया था.
*जय नाथ जी*

Thursday, 4 January 2018

राधा का दर्द .........

राधा का दर्द .........

अब तक का सबसे सुदंर मैसेज .........

ये पढने के बाद एक "आह" और एक "वाह" जरुर निकलेगी...

कृष्ण और राधा स्वर्ग में विचरण करते हुए
अचानक एक दुसरे के सामने आ गए

विचलित से कृष्ण-
प्रसन्नचित सी राधा...

कृष्ण सकपकाए,
राधा मुस्काई

इससे पहले कृष्ण कुछ कहते
राधा बोल उठी-

"कैसे हो द्वारकाधीश ??"

जो राधा उन्हें कान्हा कान्हा कह के बुलाती थी
उसके मुख से द्वारकाधीश का संबोधन कृष्ण को भीतर तक घायल कर गया

फिर भी किसी तरह अपने आप को संभाल लिया

और बोले राधा से ...

"मै तो तुम्हारे लिए आज भी कान्हा हूँ
तुम तो द्वारकाधीश मत कहो!

आओ बैठते है ....
कुछ मै अपनी कहता हूँ
कुछ तुम अपनी कहो

सच कहूँ राधा
जब जब भी तुम्हारी याद आती थी
इन आँखों से आँसुओं की बुँदे निकल आती थी..."

बोली राधा -
"मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ
ना तुम्हारी याद आई ना कोई आंसू बहा
क्यूंकि हम तुम्हे कभी भूले ही कहाँ थे जो तुम याद आते

इन आँखों में सदा तुम रहते थे
कहीं आँसुओं के साथ निकल ना जाओ
इसलिए रोते भी नहीं थे

प्रेम के अलग होने पर तुमने क्या खोया
इसका इक आइना दिखाऊं आपको ?

कुछ कडवे सच , प्रश्न सुन पाओ तो सुनाऊ?

कभी सोचा इस तरक्की में तुम कितने पिछड़ गए
यमुना के मीठे पानी से जिंदगी शुरू की और समुन्द्र के खारे पानी तक पहुच गए ?

एक ऊँगली पर चलने वाले सुदर्शन चक्रपर भरोसा कर लिया
और
दसों उँगलियों पर चलने वाळी
बांसुरी को भूल गए ?

कान्हा जब तुम प्रेम से जुड़े थे तो ....
जो ऊँगली गोवर्धन पर्वत उठाकर लोगों को विनाश से बचाती थी
प्रेम से अलग होने पर वही ऊँगली
क्या क्या रंग दिखाने लगी ?
सुदर्शन चक्र उठाकर विनाश के काम आने लगी

कान्हा और द्वारकाधीश में
क्या फर्क होता है बताऊँ ?

कान्हा होते तो तुम सुदामा के घर जाते
सुदामा तुम्हारे घर नहीं आता

युद्ध में और प्रेम में यही तो फर्क होता है
युद्ध में आप मिटाकर जीतते हैं
और प्रेम में आप मिटकर जीतते हैं

कान्हा प्रेम में डूबा हुआ आदमी
दुखी तो रह सकता है
पर किसी को दुःख नहीं देता

आप तो कई कलाओं के स्वामी हो
स्वप्न दूर द्रष्टा हो
गीता जैसे ग्रन्थ के दाता हो

पर आपने क्या निर्णय किया
अपनी पूरी सेना कौरवों को सौंप दी?
और अपने आपको पांडवों के साथ कर लिया ?

सेना तो आपकी प्रजा थी
राजा तो पालाक होता है
उसका रक्षक होता है

आप जैसा महा ज्ञानी
उस रथ को चला रहा था जिस पर बैठा अर्जुन
आपकी प्रजा को ही मार रहा था
आपनी प्रजा को मरते देख
आपमें करूणा नहीं जगी ?

क्यूंकि आप प्रेम से शून्य हो चुके थे

आज भी धरती पर जाकर देखो

अपनी द्वारकाधीश वाळी छवि को
ढूंढते रह जाओगे
हर घर हर मंदिर में
मेरे साथ ही खड़े नजर आओगे

आज भी मै मानती हूँ

लोग गीता के ज्ञान की बात करते हैं
उनके महत्व की बात करते है

मगर धरती के लोग
युद्ध वाले द्वारकाधीश पर नहीं, i.
प्रेम वाले कान्हा पर भरोसा करते हैं

गीता में मेरा दूर दूर तक नाम भी नहीं है,
पर आज भी लोग उसके समापन पर " राधे राधे" करते है". ....